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गुरूदेव तुम्हारे चरणों में, सतकोटि प्रणाम हमारा है। मेरी नैया पार लगा देना, कितनों को पार उतारा है। मैं बालक अबुध तुम्हारा हूॅं, तुम समरथ पिता हमारे हो। मुझे अपनी गोद बिठा लेना, दाता लो भुजा पसारा है। यद्यपि संसारी ज्वालायें, हम पर प्रहार कर जाती हैं। पर शीतल करती रहती है, तेरी शीतल अमृत धारा है।। जब आंधी हमें हिला देती, ठंडी जब हमें कंपा देती। मुस्कान तुम्हारे अधरों की, दे जाती हमें सहारा है।। कुछ भुजा उठाकर कहते हो, कुछ महामंत्र सा पढ़ते हो। गद्-गद् हो जाता हूं भगवन, मिल जाता बड़ा सहारा है। इस मूर्ति माधुरी की झांकी, यदि सदा मिला करती स्वामी। सौभाग्य समझते हम अपना, कौतूहल एक तुम्हारा है।। मैं बारम्बार प्रणाम करूॅं, चरणों में शीश झुकाता हूॅं। अब पार अवश्य हो जाउंगा, तुमने पतवार संभाला है।।
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