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कब तक रहोगे रूठे, बिनती सुनो हमारी,
कुछ तो हमें बता दो, क्या भूल है हमारी।
सब लोक लाज छोड़ा, एक गुरु से नाता जोड़ा,
मुख मोड़ आप बैठे, बिगड़ी दशा हमारी।
पापी हृदय पिघल कर, आंखों से निकल आया,
इन आंसुओं की माला, लो भेंट है तुम्हारी।
पतितों को तारते हो, पापों की क्षमा करके,
क्यों हो तू गुरुवर रूठे, आयी हमारी बारी।
मैं भिक्षु हूॅ तुम्हारा, दाता हो स्वामी मेरे,
खाली न मुझको भेजो, होगी हंसी तुम्हारी।
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