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जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी। उन हकीमों ने कहा यों बोलकर। कहते थे दावे किताबे खोलकर। यह दवा हरगिज न खाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी। जर सिकन्दर का यहीं सब रह गया। मरते दम लुकमान भी ये कह गया। यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी। ऐ मुसाफिर क्यों बसरता है यहां। यह किराए पर मिला तुमको मकां। कोठरी खाली करा ली जाएगी, बिन मुहूरत के उठाली जाएगी। होगा जम लोक में जब जब तेरा हिसाब। कैसे मुकरोगे बताओ ऐ जनाब। जब बही तेरी निकाली जाएगी। बिन मुहूरत के उठाली जायेगी। जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
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