|
|
|
|
भरोसो चरन कमल का तेरे ।। टेक।। सांस सांस पर आस तुम्हारी और न काहू केरे । जब से जीव भया संसारी फिरे काल के फेरे। सुधि बुधि भूल रहा निज घर की सपने हूं हरि नहि हेरे। परम् दयाल हरी निज जनहित रूप धरा नर केरे। जयगुरुदेव बतायो नाम निज भेद दियो घर पूरे। जाग जाग अब क्यों नहीं जागे हरि आये बिन हेरे। चरण कमल पर शीश चढ़ाकर भाग जगा निज लेरे।।
|
|
|
|