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बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की एक शिक्षाप्रद सुनाई गई _कहानी है|
एक महात्मा जी थे उनके दो शिष्य पास में रहा करते थे| एक दिन महात्मा जी
लेटे और दोनों शिष्यों से कहा कि तुम दोनों आओ और मेरे पांव दबाओ| शिष्य
चरण सेवा में लग गए| दोनों अपने काम में लगे हुए थे| तभी महात्मा जी के
दाये पैर में खुजली होने लगी तो उन्होंने बायाँ पैर दाहिने पर रखा खुजलाने
के लिए तो जो शिष्य बायाँ पैर दबा रहा था उसने दायें पैर पर मुक्का मार
दिया और दुसरे शिष्य से बोला की तू अपने पाँव को सम्हाल कर रख, मेरे पावं
की तरफ न आये|
कुछ देर बाद बाएं पैर में खुजली हुई तो महात्माजी दायें
पैर को बाएं पैर पर रखा तो दाहिने वाले शिष्य ने बायें पैर पर मुक्का मारा
और बायें वाले शिष्य कहा की तू भी अपने पैर को सम्हाल कर रख, मेरे पैर पर
ना आये|
दोनों इसी बात को लेकर तकरार करने लगे, पेरो की खीचतान करने
लगे| इस खिचातानी में चरण सेवा बंद हो गई और संघर्ष होने लगा| महात्मा जी
उठकर बैठे और कहा की अरे ये तो दोनों पैर मेरे है| तुम्हे दबाने को बुलाया
था और तुम दोनों तो तेरे मेरे की लड़ाई करने लगे | शिष्यों को अपनी गलती
महसूस हुई|
स्वामीजी महाराज ने इस _कहानी को
सुनाकर हँसते हुए कहा था कि ये है अज्ञानता में सब लड़ने लगते है| देखा
जाये तो संघर्ष या तो अज्ञानता में होता है या फिर स्वार्थ में होता है
अज्ञानता में संघर्ष होता है तो उसे समझा-बुझा कर रोका जा सकता है| लेकिन
अगर स्वार्थ में संघर्ष हो तो स्वार्थ कुछ समझने नहीं देता | संघर्ष चाहे
जहाँ हो कारण ये ही दोनों रहते है|
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