एक
राजा का नियम था कि वह नित्य एक अतिथि को भोजन करने के बाद ही भोजन करता
था | एक बार राजा अपने कुछ मंत्री तथा दरबारियों के साथ भ्रमण को निकला |
रास्ते में एक जगह डेरा पड़ा | राजा ने मंत्री से कहा कि किसी अतिथि को
भोजन कराओ | जंगल के सूनेपन में अतिथि कहाँ ? मंत्री ढूंढते रहे |
उन्होंने देखा कि एक साधू तप कर रहे है | उन्हें उठायें कैसे ? मंत्री
भोजन लेकर वहीं पहुंचा और तपस्वी के मुंह को खोलकर भोजन उसमें डाल दिया |
किन्तु साधू जी की समाधी नहीं टूटी | राजा का प्रण पूरा हुआ | जब मंत्री
लौटे तो राजा के पूछने पर उस साधू की बात बता दी और यह कहा कि उनकी समाधी
नहीं टूटी थी | राजा भी दर्शन करने गया | राजा ने देखा योगिराज बैठे हुये
है | उनको बड़ी हैरत हुई | राज्य में लौट आए | एक वेश्या को बुलाया और जाकर
कहा कि तुम जाकर उस साधू कि तपस्या भंग करो | वेश्या गयी बहुत नाचती गाती
रही किन्तु योगिराज की साधना नहीं भंग हुई | हारकर वेश्या लौटी | उसने
राजा को सब बातें बताई | राजा ने कहा तुम वही रहो हम सारी सुविधा देते
रहेंगे | वेश्या वहीं रहने लगी | साधु की समाधी टूटी किन्तु बाहर का वैभव
विलास देखकर भी वे विचलित नहीं हुए |
एक बार राजा उधर से गुजरा तो उसने कहा महाराज ! दिन कैसे कट
रहे है ? साधू बोले- गुजारा कर रहा हूँ | राजा को बुरा लगा कि वह तो सारी
सुख सुविधा दे रहा है और इनका गुजारा होता है | कुछ दिन बाद राजा बीमार
पड़ा तो साधू को बुलवाया | साधू पहुंचे | राजा दीन अवस्था में पड़ा था |
साधू ने पूछा राजन कैसी तबियत है | राजा ने कराहते हुए कहा दिन काट रहा हूँ
| साधू बोले राजन इतने फ़ौज फाटे महल ऐश्वर्य के बीच तुम दिन काट रहे हो ?
राजा ने कहा - महाराज ! यह मेरे किस काम आ रहे है | मैं तो तड़प रहा हूँ |
साधू बोले राजन ! मैंने पहले तुमसे कहा था कि गुजारा कर रहा हूँ तो
तुम्हें कितना बुरा लगा था | अब समझे | राजा चल बसा |
कहते है किसी का स्वभाव नहीं बदलता है | वेश्या साधू के पास
रहती थी पर उसका स्वभाव छुटा नहीं था | उसने एक कुत्ता पाल रखा था | एक दिन
उसने पूछा महाराज ! आपकी दाढ़ी अच्छी है या मेरे कुत्ते कि दुम ? साधू ने
कहा इसका जबाब तब दूंगा जब दुनिया से जाने लगूंगा | आई गई बात खत्म हो गयी |
साधू जी का वक़्त पूरा हुआ | उन्होंने शरीर त्याग दिया | उनके भक्त लोग
अर्थी उठाने की तैयारी करने लगे | वेश्या भी वहीं थी | उसे एकाएक अपने
प्रश्न कि याद आ गयी | उसने साधू जी के शरीर को झकझोरना शुरू किया और बोली
कि महाराज ! मेरे प्रश्न का उत्तर दे कर जाइये | साधु पूरे संत थे | उन्हें
शरीर छोड़ने और आने में क्या लगता | उन्होंने आँखे खोली और अपनी लम्बी
दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा - उस दिन इसलिए नहीं बताया था कि जब तक यहाँ
दुनिया में रहना है क्या मालूम कोई दाग लग जाए | पर आज में बेदाग जा रहा
हूँ | और साधु जी चिर समाधी में डूब गए |
यह कहानी सुनाकार बाबा जी (प्यारे लाल ) ने कहा कि भाई संतो कि
दाढ़ी में कोई दाग नहीं रहता है | तुम पास रहो तो समझवारी और होशियारी से
रहो , उन पर विश्वास करो और उनकी बात मानो | बेकार कि बातों में पड़ने से
क्या फायदा |